जानिए क्यों मनाते हैं ईद

ईद उल-फ़ित्र या ईद उल-फितर (अरबी: عيد الفطر)

ईद मुस्‍ल‍िम धर्म का सबसे बड़ा त्‍योहार है जिसे पूरे विश्‍व में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। भारत में इस बार ईद 16 जून को मनाई जा रही है।

रमजान (30 रोजों यानि धैर्य, संयम, नेकी और खुदा की इबादत के दिन) का पाक महीना पूरा होने के साथ और अंतिम रोजे का चांद के दीदार होने पर ईद मनाई जाती है। मुस्लिम समुदाय के साथ ही आज प्रेम और भाईचारे में यकीन रखने वाले सभी लोग इस त्योहार को बड़े उत्साह और उमंग के साथ गले मिलकर व सैंवियाँ आदि पकवान खिलाकर व खाकर मनाते हैं।

🌼जानिए क्यों मनाते हैं ईद🌼

क्योंकि रमजान के महीने में ही पाक कुरान इस धरती पर आई थी।

कब मनाई गई पहली ईद-🌙

आखिरकार इस दुनिया में पहली ईद कब मनाई गई। इस्लाम में माना जाता है कि पहली ईद हजरत मुहम्मद पैगंबर ने सेन 624 ईसवी में जंग-ए-बदर के बाद मनाई थी।

चाँद🌙 देखकर ही क्यों मनायी जाती है ईद-

ईद का चांद से बड़ा गहरा संबंध है। ईद उल फितर हिजरी कैलेंडर के दसवें महीने के पहले दिन मनाई जाती है और इस कलेंडर में नया महीना चांद देखकर ही शुरू होता है। ईद भी रमजान के बाद नए महीने की शुरूआत के रूप में मनाई जाती है जिसे शव्वाल कहा जाता है। जब तक चांद न दिखे रमजान खत्म नहीं होता और शव्वाल शुरू नहीं हो सकता। वैसे इसका संबंध एक एतिहासिक घटना से भी है। कहा जाता है कि इसी दिन हजरत मुहम्मद ने मक्का शहर से मदीना के लिए कूच किया था।

ईद वाले दिन की शुरुआत -🌅

ईद वाले दिन की शुरूआत सुबह जल्दी उठकर फजर की नमाज अदा करने से होती है। उसके बाद खुद की सफाई जैसे, गुस्ल और मिस्वाक करना। इसके बाद साफ कपड़े पहनना सबसे साफ फिर उन पर इत्र लगाना और कुछ खाकर ईदगाह जाना। नमाज से पहले जकात/फिकरा करना भी जरूरी होता है। ईद की नमाज खुले में ही अदा की जाती है। सबसे खास बात ये है कि ईदगाह आने और जाने के लिए अलग अलग रास्तों का इस्तेमाल किया जाता है।

ईद पर नये कपड़े ही क्यों? कपड़ो़ पर इत्र क्यों? कोई निहायती गरीब हो तब-ईद पर साफ कपड़े पहनने जरूरी होते हैं नए नहीं। साफ भी वो जो सबसे साफ हों, इसलिए नए कपड़े पहनने की कोई बाध्यता नहीं है। कपड़ों पर इत्र लगाने का रिवाज है पर जरूरी नहीं है।

🎊 ईद का विशेष महत्त्व -🎊

हमारे मुस्लिम समाज के लिए दो ही दिन विशेष खुशी वाले होते हैं ईद उल फितर और ईद उल जुहा। रमजान में पूरे महीने रोजे रखने के बाद इसकी समाप्ति के रूप में ईद मनाई जाती है। ईद अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी और काम में बरकत यानि ईनाम लेने का दिन है। ईद मनाने से पहले एक परंपरा निभाई जाती है जिसे फितरा या जकात कहा जाता है, इसके तहत ईद मनाने वाले हर मुस्लिम को अपने पास से गरीबों को कुछ अनाज व यथाशक्ति दान देना जरूरी होता है जिससे वह जरूरतमंद भी खुशी से ईद मना सके।

Last updated: जून 16th, 2018 by आकांक्षा सक्सेना

आकांक्षा सक्सेना
ब्लॉगर, स्तंभकार ( कानपूर, उत्तर प्रदेश) सदस्य स्क्रिप्ट राइटर्स एसोशिएसन, मुम्बई
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