गर्मी के दस्तक देते ही बढ़ी देसी फ्रिज की मांग
गर्मी के दिनों में प्यास बुझाने के लिए जरूरी है ठंडा पानी. पानी को ठंडा करने के लिए बहुत सारी एल्कोट्रॉनिक उपकरण बने हैं. लेकिन देसी फ्रिज का मजा ही कुछ और है. देसी फ्रिज के रूप में प्रसिद्ध मिट्टी के घड़े की बाजारों में बड़े पैमाने पर बिक्री शुरू हो गयी है. ठंडा पानी के लिए आधुनिक तकनीक से उपलब्ध कृत्रिम उपकरण जहाँ मंहगा है वहीं विद्युत आधारित होता है.
बदहाल बिजली व्यवस्था ने बढ़ा दी घड़े की मांग
लेकिन मधुपुर के विद्युत व्यवस्था की हाल किसी से छुपी नहीं है. एक एक घण्टे के रोटेशन के कारण घर में गर्मी के दिन फ्रिज सिर्फ शोभा की वस्तु बनकर रह गयी है यही कारण है कि मधुपुर में इन दिनों देसी फ्रिज यानी मिट्टी के घड़ा का उपयोग बहुत अधिक मात्रा में बिक्री हो रही है. एक घड़े की शुरआत कीमत 30-से 40 रुपया से लेकर 200 तक है. वहीं देसी फ्रिज के नाम से प्रचलित घड़ा शुद्ध व ठंडा के लिए आम और खास सभी वर्ग के लोगों के लिए उपयोगी होता है. घड़ा का पानी शीतल और स्वादिष्ट के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए अनुकूल होता है क्योंकि यह मिट्टी से गाँव के कारीगर द्वारा बनाए जाते हैं। लोग गर्मी के दिनों में घड़ा का पानी पीना अधिक पंसद करते हैं। घड़ा में पानी ठंडा करने के लिए न तो बिजली की जरूरत है और नहीं खराब होने का डर. गर्मी के दस्तक के साथ ही मिट्टी के घड़े की मांग बाजार में बढ़ गई है। गाँव-गाँव से लोग साइकिल पर मिट्टी के घड़ों को लादकर शहर के बाजारों में बिक्री के लिए ला रहे हैं। गाँव में रहनेवाले कुंभकार घड़ा निर्माण के विशेषज्ञ होते हैं. ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले कुंभकार गर्मी आते ही घड़ा निर्माण काम में जुट गए हैं.क्योंकि इससे इसके परिवार का भरण पोषण करते है.घड़ा निर्माण की पूरी प्रक्रिया कम से कम एक सप्ताह का होता है.शहर में मारवाड़ी समाज के द्वारा शहर के अभी चौक-चौराहे पर घड़ा भी हर साल लागया जाता है ताकि राहगीरों को मिट्टी के घड़ा का शुद्ध और ठंडा पानी पीने के लिए मिले.गघड़ा बिकने से कुम्हारों की आच्छी खासी कमाई भी होती है.
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