अपनी-अपनी सांस्कृतिक विशेषताएं
शक्ति स्वरूप मानी जाने वाली माँ दुर्गा की भक्ति में पूरा देश डूबा हुआ है. दुर्गापूजा का त्यौहार भारतवर्ष में धूमधाम से मनाया जा रहा है. हालांकि हर इलाके की अपनी सांस्कृतिक विशेषताएं इस त्यौहार के साथ जुड़ी होती हैं. लेकिन पश्चिम बंगाल में दुर्गापूजा का खासा महत्त्व है. 9 दिनों तक होने वाली शारदीय नवरात्र के अवसर पर माँ दुर्गा की पूजा होती है और इस दौरान बंगाल में नारी-पूजा की परंपरा का साफ असर दीखता है. बंगाल में माँ काली और दुर्गा की आराधना बहुत ही श्रद्धा के साथ होती है.
भव्य व आकर्षक पंडालो को देख श्रद्धालु आनन्दित
इसलिए शारदीय उत्सव बंगाल का प्रमुख त्यौहार है. हर आमिर-गरीब, महिला-पुरुष और बच्चे-बूढ़े माँ दुर्गा की भक्ति में लीन रहते है और पूरा बंगाल दुर्गामय हो जाता है. आज अष्टमी को लेकर लोगों में काफी हर्ष और श्रद्धा झलक रही है. सभी अपनी क्षमता के अनुसार नए परिधान पहने दिख रहे है. खासकर बच्चों और महिलाओं में अधिक ख़ुशी है. पूजा आयोजको द्वारा लाखो-करोडो रुपये खर्च करके एक से बढ़कर एक पूजा पंडाल और दुर्गा प्रतिमाओं को तैयार किया गया है. पूरे शिल्पांचल में भव्य व आकर्षक पंडालो को देख श्रद्धालु आनन्दित हो रहे है. इसके साथ ही पूजा आयोजको और पुलिस-प्रशासन द्वारा दर्शनार्थियों के सुविधा और सुरक्षा का पूरा ध्यान रख रही है.
बंगाल में नारियो का अहम् स्थान
दरअसल पश्चिम बंगाल में माँ दुर्गा और काली की पूजा विशेष मानी जाती है और यह परम्परा पूरी दुनियाँ को सन्देश देता है कि बंगाल में नारियो का अहम् स्थान है. यहाँ महिलाओं को सम्मान दिया जाता है. इसके साथ ही न्याय और अन्याय के द्वंद्व दुर्गापूजा के माध्यम से दर्शाया जाता है. जिसका मकसद यही है कि लोग समझें कि जीत अंतत: सत्य, न्याय और प्रेम की होती है. रावण और उसके जैसे तमाम आतताइयों को एक दिन हारना ही होता है. इस पूजा का मकसद केवल भक्ति करना नहीं, बल्कि लोगों में इतिहास और मानव सभ्यता के प्रति समझ विकसित करना भी है. इस प्रसंग का आशय यही है कि केवल नैतिक बल से अन्याय को नहीं हराया जा सकता. उसकी हार तो तभी होती है जब न्यायी और सत्य के साथ खड़ा इंसान मौलिक रास्ते का भी अनुसरण करे.
मौलिक शक्ति की भी आवश्यकता
मान्यताओ के अनुसार जब लंकापति रावण सीता का हरण करके ले गए थे. तो सीता को वापस लाने के लिए राम लंका पर आक्रमण किये थे. लेकिन नैतिक शक्तियों के स्वामी भगवान राम,आसुरी शक्तियों के मालिक रावण से लड़ाई में हार रहे थे. तभी उनके सलाहकार जाम्बवत ने माँ शक्ति की आराधना करने का सलाह दिए. जाम्बवत ने कहा आप सिर्फ नैतिक शक्ति के सहारे रावण को नहीं हरा सकते है, इसके लिए आपको मौलिक शक्ति की भी आवश्यकता है. जिसके बाद राम ने 9 दिनों का घोर पूजन कर माँ शक्ति को प्रसन्न किये और लंका पर बिजाई प्राप्त हुए. यह पूरा घटनाक्रम यह प्रेरणा देता है कि नारी शक्ति को नजरंदाज करके सफल नहीं हुआ जा सकता है.