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लॉकडाउन के कारण दिहाड़ी मजदूरों को नहीं मिल रहा काम जीना हुआ दूभर

धनबाद/कतरास। किसी को इज़्ज़-ओ-नाज़, किसी को नाम चाहिए! मैं मजदूर हूँ साहब मुझे पेट के लिए काम चाहिए!!_ जी हां। एक मजदूर को काम के सिवाए और कुछ नहीं चाहिए होता है। लेकिन कोरोना महामारी और लॉकडाउन का असर सबसे ज्यादा रोज कमाने-खाने वाले मजदूरों पर पड़ा है। खासकर दिहाड़ी मजदूरों की स्थिति भयावह बनती जा रही है। काम की तलाश में इन्हें इधर-उधर भटकना पड़ रहा है। बावजूद इसके इन्हें काम नहीं मिल रहा है। इसकी पहली वजह लोगों के पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं, दूसरा संक्रमण का खतरा होने के डर से लोग इन्हें काम सेने से बच रहे हैं। लिहाजा दिहाड़ी मजदूरों की स्थिति बद से बदत्तर होती जा रही है। हमने दिहाड़ी मजदूरों की पीड़ा को समझने कतरास थाना चौक पहुँचा।

रोज की भाँति दर्जनों मजदूर बंद दुकानों के चौखट पर बैठे पाए गए। ये प्रतिदिन यहाँ सुबह सात-आठ बजे के करीब पहुँच जाते हैं। कोई ग्राहक नहीं मिलने की स्थिति में दस बजे पुनः अपने घरों को लौट जाते हैं। ये सिलसिला मुसलसल चलता ही जा रहा है। पचगढ़ी मस्जिद पट्टी के रहने वाले राज मिस्त्री मो० जाबिर अंसारी बताते हैं कि पिछले साल भी जिंदगी फाकाकशी में ही गुजरी। सोचा इस साल कुछ बेहतर होगा। लेकिन कोरोना के बढ़ते मामले व लॉकडाउन ने सारे अरमानों पर पानी फेर दिया। बमुश्किल सप्ताह में एक-दो दिन ही काम मिल पाता है। इतने में घर चला पाना मुश्किल हो रहा है। तेतुलमारी के रहने वाले राज मिस्त्री किशोर का भी कहना है कि कोई पार्टी (ग्राहक) आता है तो मजदूर आपस में ही झगड़ पड़ते हैं। जिसका फायदा पार्टी उठाते हैं। उन्हें उचित मजदूरी नहीं मिल पा रहा है। परिवार में सात सदस्य हैं। घर चलाना मुश्किल हो रहा है।

हॉकर, प्राइवेट टीचर का भी बुरा हाल

हॉकर, प्राइवेट टीचर दिहाड़ी मजदूर बस के ड्राइवर खलासी तक सभी ऐसे तमाम कार्य क्षेत्र जहाँ लोग जीवन तो बचा रहे, हैं, ‘जान है तो जहान है, लेकिन धर चलााने में असमर्थ हो गए हैैं।ऐसे में तमात स्वमेव सेवी संस्थाओं से अनुरोध है कि वो आगे बढ़ कर सभी जरूरतमंदों की मदद करे जो दिहाड़ी कर के अपना जीवन यापन कर रहे थेें। समाज सेेवी अजय चौबे भी अपने अपने आस-पास के जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं और सभी को इस में बढ़-चढ़ कर मदद करने का अनुरोध किया।

जाबिर और किशोर जैसी ही पीड़ा रामू, रोहित, अमित, राज, सुदामा, मुर्तजा, मुंशी, संतोष, गौरीशंकर, महेंद्र, दिनेश, रीना देवी, संतरा देवी, शांति देवी, लक्ष्मी देवी आदि दिहाड़ी मजदूरों की भी है। ये मजदूर हर सुबह इस उम्मीद पर मोड़ पर पहुँचते हैं कि आज कोई न कोई उन्हें ले जाने वाला मिल जाएगा लेकिन दूसरे दिन काम मिलने की हसरत लिए वे अपने घरों को लौट जाते हैं।

Last updated: मई 18th, 2021 by Arun Kumar