34 वर्षो के बाद बन रहा है यह योग हर मनोकामना होगी पूर्ण

दीपावली के पहले से ही सूर्य भगवान के उपासना का सबसे बड़ा त्योहार छठ की तैयारियां शुरू हो जाती है . इस साल चार दिनों तक चलने वाला ये छठ पर्व 24 अक्टूबर मंगवार से नहाय खाय के साथ शुरू हो गया. 25 अक्टूबर को खरना, 26 अक्टूबर को सांझ का अर्ध्य और 27 अक्टूबर को सूर्य को सुबह का अर्ध्य के साथ ये त्योहार संपन्न होगा. पूर्वी भारत(बिहार एवं उत्तर प्रदेश) के कुछ हिस्सों से शुरू हुआ यह पर्व अब लगभग भारत के हर उस हिस्से में मनाया जाता है जहां हिन्दी भाषी रहते हैं । अब तो अहिंदी भाषियों में भी छठ पूजा की परंपरा शुरू हो गयी है। छठ की महिमा से प्रभावित कई मुस्लिम लोग भी इस त्योहार को  मनाते हैं। इस त्यौहार की बड़ी मान्यता है. छठ पूजा करने से सूर्यदेव सारे कष्ट हर लेते हैं.

इस पर्व में गलती के लिए कोई जगह नहीं होती है

चार दिन तक चलने वाले इस आस्था का महापर्व को मन्नतों का पर्व भी कहा जाता है. इसके महत्व का इसी बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इसमें किसी गलती के लिए कोई जगह नहीं होती है, इसलिए शुद्धता और सफाई के साथ तन और मन से भी इस पर्व में जबरदस्त शुद्धता का ख्याल रखा जाता है. छठ महापर्व मंगलवार 24 अक्टूबर से शुरू हो गया.

34 वर्षो के बाद बन रहा है रवि योग : ज्योतिषाचार्य डॉ.त्रिवेदी

पहले दिन मंगलवार की गणेश चतुर्थी है. पहले दिन सूर्य का रवियोग भी है. इस बार महासंयोग 34 वर्षो के बाद बन रहा है. रवियोग में छठ की विधि विधान शुरू करने से सूर्य हर कठिन मनोकामना भी पूरी करते हैं. चाहे कुंडली में कितनी भी बुरी दशा चल रही हो, चाहे शनि-राहु कितना भी भारी क्यों ना हों, सूर्य के पूजन से सभी परेशानियों का नाश हो जाएगा. ऐसे महासंयोग में यदि सूर्य को अर्घ्य देने के साथ हवन किया जाए तो आयु बढ़ती है.

महाभारत और रामायण काल से जुड़ा है छठ पर्व

आस्था के इस महापर्व पर प्रख्यात ज्योतिषाचार्य डॉ.सदाशिव त्रिपाठी जी महाराज का कहना है कि छठ की पौराणिक कथाओं में जहां एक ओर इसका संबंध महाभारत से बताया गया है, वहीं दूसरी ओर इसका संबंध रामायण से भी है. महाभारत में जब पांडवों ने जुए में अपना सब कुछ हार दिया तो द्रौपदी ने छठ का व्रत किया था. छठ माता ने कृपा दिखाई और सब कुछ पांडवों के पास वापस आ गया.

उन्होंने बताया कि छठ पर्व में सूर्य की पूजा का संबंध भगवान राम से भी माना जाता है. दरअसल दशहरा से लेकर छठ तक एक क्रम में मनाया जाने वाला त्‍योहार भगवान राम से भी जुड़ा हुआ है. दशहरा के द‌िन भगवान राम ने रावण का वध क‌िया था. दीपावली के द‌िन 14 साल के बाद अयोध्या लौटे थे. दीपावली से छठे द‌िन भगवान राम ने सीता के संग अपने कुल देवता सूर्य की पूजा सरयू नदी में की थी. भगवान राम ने देवी सीता के साथ षष्टि तिथि का व्रत रखा और सरयू नदी में डूबते सूर्य को फल, मिष्टान एवं अन्य वस्तुओं से अर्घ्य प्रदान किया. सप्तमी तिथि को भगवान राम ने उगते सूर्य को अर्घ्य देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया. इसके बाद राजकाज संभालना शुरू किया. इसके बाद से आम जन भी सूर्यषष्ठी का पर्व मनाने लगे.

हर कष्ट का निवारण होता है छठ पुजा से

ज्योतिषाचार्य डॉ.त्रिवेदी ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि सुबह, दोपहर और शाम तीन समय सूर्य देव विशेष रूप से प्रभावी होते हैं. सुबह के वक्त सूर्य की आराधना से सेहत बेहतर होती है. दोपहर में सूर्य की आराधना से नाम और यश बढ़ता है. वहीं शाम के समय सूर्य की आराधना से जीवन में संपन्नता आती है. शाम के समय सूर्य अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं. इसलिए प्रत्यूषा को अर्घ्य देना तुरंत लाभ देता है. जो डूबते सूर्य की उपासना करते हैं, वो उगते सूर्य की उपासना भी जरूर करें.

जो लोग बिना कारण मुकदमे में फंस गए हों या जिन लोगों का कोई काम सरकारी विभाग में अटका हो, ऐसे लोगों को डूबते सूर्य की पूजा करनी चाहिए.जिन लोगों की आंखों की रौशनी घट रही हो या जिन लोगों को पेट की समस्या लगातार बनी रहती हो ऐसे लोग अगर डूबते सूर्य को अर्घ्य दें तो उन्हें बहुत लाभ होगा. यही नहीं जो विद्यार्थी बार-बार परीक्षा में असफल हो रहे हों उन्हें भी सूर्य को डूबते हुए अर्घ्य देना चाहिए. अंत में ज्योतिषाचार्य डॉ.त्रिवेदी ने कहा कि इस बार महासंयोग 34 वर्षो के बाद बन रहा है. जिससे सभी को आस्था के इस महापर्व को सही से पालन करने और भगवान् भाष्कर से सभी का उत्थान करने का प्रार्थना किये.

Last updated: अक्टूबर 26th, 2017 by News Desk

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