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टायर पंचर बनाकर अपने परिवार का जीविका चलाने वाले बुजुर्ग से पाँच लाख की ठगी, बस खरीदने के चक्कर में पाँच लाख के साथ बुजुर्ग ने गँवाया अपना आशियाना

आसनसोल, पश्चिम बंगाल आसनसोल अपकार गार्डन इलाके में सेनरेले रोड स्थित एक टायर पंक्चर दुकान चलाकर अपना व अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले 65 वर्षीय मंसूर आलम पिछले पाँच वर्षों से न्याय के लिये दर-बदर की ठोकारें खा रहे हैं. मंसूर आलम की ठोकरें खाने की वजह है. उनके एक करीबी मित्र द्वारा एक सोची समझी साजिस के तहत पाँच लाख रुपये ठगी करने का साथ ही उनके जीवन की जमा पूंजी उनके घर को हड़पने का जिसको पाने के लिये मंसूर आलम पिछले पाँच वर्षों से न्याय के लिये दर-बदर की ठोकरें खा रहे थे पीड़ित मंसूर आलम की अगर माने तो बर्नपुर इलाके के रहने वाले उनके एक पुराने मित्र रंजीत सोनकर को पैसे की जरूर त थी जिसकी वजह से रंजीत सोनकर अपनी मिनी बस जिसका नंबर wb. 37A. 3838 को बेचने की सिफारिस मंसूर आलम से की जिसका कीमत रंजीत सोनकर ने 6 लाख 60 हजार रुपए कीमत रखी. और मंसूर आलम से कहा कि अगर वो चाहें तो इस बस को वो खरीद सकते हैं. मंसूर आलम रंजीत सोनकर की बात सुनकर बस खरीदने के लिये राजी हो गये. और अपनी घर गिरवी रखकर उन्होंने किसी भगत नाम के व्यक्ति से कुछ उधार पैसे ले लिये साथ में उन्होंने अपने कुछ अन्य मित्रों से भी पैसे उधार ले लिये और पाँच लाख रुपये रंजीत सोनकर को एडवांस के तौर पर देकर बस ले लिया. और बाकि के एक लाख 60 हजार रुपये तीन महीने के अंदर भुगतान करने के लिये एक एग्रीमेंट बनाया. पर रंजीत सोनकर व मंसूर आलम के बीच हुई इस पैशों की लेनदेन में जो एग्रीमेंट रंजीत सोनकर ने अपने वकील से बनवाया उस एग्रीमेंट में रंजीत सोनकर ने पूरा गड़बड़-झाला किया वो इस लिये की मंसूर आलम अनपड़ थे उनको कागजी नियमों व क़ानून के बारे में जरा सी भी कोई जानकारी नहीं थी उनको रंजीत व उसके वकील ने जो कुछ भी समझाया वो उसी में अपना समर्थन देते गये वो इस लिये की उनको अपने मित्र रंजीत सोनकर पर खुद से भी ज्यादा भरोसा था रंजीत सोनकर की मौजूदगी में पैसों का लेनदेन रंजीत सोनकर व मंसूर आलम के बीच तो हुआ पर उस एग्रीमेंट में कहीं भी रंजीत सोनकर के वकील ने अपना हस्ताक्षर नहीं किया. जिस कारण दोनों के बीच पैशों को लेकर हुए लेनदेन के लिये बनाया गया एग्रीमेंट पूरी तरह फर्जी साबित हो गया. रंजीत सोनकर ने मंसूर आलम को बस तो दे दिया पर एक महीने के बाद ही वो अपना बस लेने अपने कुछ लोगों के साथ मंसूर आलम के पास चला गया. और मंसूर आलम से झगड़ा कर बस ले गया. मंसूर ने बस पाने के लिये थाना पहुँच गये. पर थाने में पता चला की पैशों को लेकर हुआ दोनों के बीच लेनदेन व उसका बना एग्रीमेंट पेपर पूरी तरह फर्जी है. तब जाकर मंसूर आलम ने न्याय के लिये न्यालय तक दरवाजा खटखटाया स्थानीय नेताओं के घर व कार्यालयों का भी चक्कर काटा जिसके बाद रंजीत रंजीत सोनकर के ऊपर दबाव बनाया गया तब जाकर रंजीत सोनकर ने मंसूर आलम को करीब 6 चेक दिए पर रंजीत सोनकर द्वारा दिया गया सभी चेक बाउंस हो गया।

मंसूर आलम को पैसे नहीं मिले उधर उनका घर भी कब्ज़ा हो गया वो इस लिये की उन्होंने उस घर को गिरवी रख बस खरीदने के लिये पैसे लिये थे. अब मंसूर आलम ना घर के रहे ना घाट के इस लिये उन्होंने न्याय के लिये राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल के राजयपाल, पश्चिम बर्द्धमान के जिला शासक व पुलिस आयुक्त को पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगाई जिसके बाद महामहिम की तरफ से व राज्य सरकार की तरफ से मामले पर जाँच के आदेश जारी हो चुके हैं. जिसपर उच्च स्तरीय जाँच चल रही है। बुजुर्ग मंसूर आलम को अब यह उम्मीद जग चुकी है, 4की जल्द ही उनके मामले में अब उनको न्याय मिल जायेगा और जब उनको पैसे मिल जायेंगे तब वह उन पैशों से अपना घर बचा लेंगे।

Last updated: जनवरी 24th, 2022 by Rishi Gupta