लॉकडाउन को लेकर रानीगंज के विभिन्न व्यवसाई संगठन अब इसका खुलेआम प्रतिवाद करने लगे हैं। जिला शासक एवं नगर प्रतिनिधि को इसकी सूचना देकर अपनी बात बताने की कोशिश की है कि इस लॉकडाउन से हम व्यवसायियों पर इसका बुरा असर पड़ रहा है। तत्काल इस विषय को गंभीरता से लेते हुए कार्यवाही करने की मांग की गई है ।
रानीगंज चैंबर ऑफ कॉमर्स की ओर से अध्यक्ष संदीप भालोटिया एवं प्रतिनिधिगण रानीगंज थाना के प्रभारी संजय चक्रवर्ती से मुलाकात कर समस्या से अवगत कराए ।
क्लॉथ मार्केट एसोसिएशन की ओर से अनूप सराफ ने भी पत्र देकर समस्या से अवगत कराया जिसमें उल्लेख है कि रानीगंज में लॉकडाउन एक तमाशा बन चुका है। एक तरफ तो राज्य सरकार द्वारा महीने में 7 दिनों का लॉकडाउन घोषित किया जाता है जो लगातार नहीं है, कुछ दिनों को छोड़ कर है और दूसरी तरफ लोकल थाना के अंतर्गत 6 क्षेत्रों को कंटेनमेंट जोन घोषित किया जा चुका है।
शहर के 80 प्रतिसत हिस्से में कंटेनमेंट जोन है , बाकी 20 प्रतिशत हिस्से में नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में जहाँ सारा बाजार बंद है वहीं नेताजी सुभाष रोड की दुकानें खुली हुई है। इस तरह के लॉकडाउन से आम व्यापारी त्रस्त है। आम दुकानदार चाहता है कि लॉकडाउन सभी जगह एक सामान हो ।
पुलिस द्वारा एक बार घोषणा की जाती है कि बाजार 1 बजे तक खुलेगा, वहीं पुलिस की गाड़ी आकर बाजार बंद करवा देती है। कपड़ों की दुकानों के लिए लॉकडाउन है, जहाँ सारा दिन में इक्के दुक्के ग्राहक आते हैं , वहीं गोलदारी और दवाई की दुकानों के लॉकडाउन नहीं है, जहाँ सारा दिन लाइन लगी रहती है। इसके लिए भी व्यापारियों में काफी असंतोष है।
व्यापारियों ने कहा हमें समझ आ गया है कि लॉकडाउन समस्या का इलाज नहीं है
संगठन की ओर से जिला शासक को दी गई पत्र में उल्लेख है कि —
“हम सभी समझ सकते है कि वर्तमान समय में आप सभी कितनी मुश्किल लड़ाई लड़ रहे है , पर साहब स्थिति को हम व्यापारी वर्ग की दृष्टि से भी देखिये। इस महामारी के कारण पिछले 6-7 महीनो से पहले ही व्यापार को काफी नुकसान हुआ है। पहले कुछ किश्तो में देश व्यापी लाॅकडाउन और अब स्थानीय प्रशासन द्वारा हम पर थोपा गया लाॅकडाउन। हम समझ सकते है कि यह आपका इस महामारी को रोकने का प्रयास है, पर इतने महीनो में हमें इतना तो समझ में आ गया है कि लाॅकडाउन इसका इलाज नहीं हो सकता । साहेब जरा हम छोटे व्यवसायीयो के लिए भी कुछ सोचिये । हमारे अनेक प्रकार के स्थाई व्यक्तिगत एवं व्यवसायिक खर्चे है। घर खर्च, बच्चों की स्कूल / ट्यूशन फीस, मेडिकल खर्च, कर्मचारियों के वेतन, बैंक के ब्याज / ईएमआई , घर -दुकान -गोदाम भाड़ा इत्यादि । एक तारीख आते ही इन सभी खर्चो की तलवार हमारे सर पर लटकने लगती है । हमें कोरोना संक्रमित भाइयों /बहनों से पूरी सहानुभूति है । प्रभु से सबको जल्द स्वस्थ करे। परंतु सौ -दो सौ लोगों के संक्रमित होने पर लाखों को दिवालियापन की ओर धकेलना न्याय संगत नहीं हो सकता । अतः साहेब अपने निर्णय पर पुनः विचार करे अन्यथा हो सकता है बहुत से नागरिक कोरोना से तो नहीं अपितु डिप्रेशन के शिकार हो जायेंगे और कोई भी कदम उठा लें ।”