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बीएमएस ने आठ जनवरी के हड़ताल का किया विरोध , इसे राजनीति प्रेरित बताया , 3 जनवरी को करेंगे धरना – प्रदर्शन

आठ जनवरी को विभिन्न ट्रेड यूनियनों द्वारा प्रस्तावित अखिल भारतीय हड़ताल से बीएमएस ने खुद को अलग करते हुये इसका विरोध किया है एवं इसे राजनीति से प्रेरित बताया है ।

एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से प्रदेश भारतीय मजदूर संघ पश्चिम बंगाल के महामंत्री उज्ज्वल मुखर्जी एवं प्रदेश सचिव जयनाथ चौबे ने बताया कि 1955 से ही भारतीय मजदूर संघ बिना किसी राजनीति से प्रभावित हुए श्रमिकों की सामाजिक सुविधाओं एवं कल्याणकारी कार्यों हेतु राष्ट्रहीत को सर्वोपरि मानते हुये एक जिम्मेवार श्रम संगठन की भूमिका में अपने कर्त्तव्यों का सम्यक निर्वहन करते आ रहे हैं ।

इसी क्रम में मजदूरों की तमाम समस्याओं के निराकरण हेतु देशव्यापी समस्त जिलों के मुख्यालय पर भारतीय मजदूर संघ द्वारा प्रधानमंत्री को ज्ञापन का पत्र जिलाधिकारी के माध्यम से आगामी 3 जनवरी 2020 को धरना/प्रर्दशन के माध्यम से प्रेषित किया जायेगा। जिसका निर्णय 11,12,13, दिसम्बर 2019 को हरिद्वार में राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में लिया गया ।

इसी के साथ बीएमएस ने यह निर्णय लिया है कि 8 जनवरी 2020 की राजनीतिक पार्टियों के द्वारा राजनीतिक उद्देश्यों हेतु होने वाली हड़ताल का विरोध करना है, क्योंकि वह हड़ताल पूर्णरुप से राजनीति प्रेरित है। बीएमएस हड़ताल को उत्सव के रूप में नहीं बल्कि ब्रह्मास्त्र के रूप में उपयोग करता है ।

मजदूरों की समस्याओं के समाधान हेतु बीएमएसके सामने कई विकल्प हैं । उन्हीं बिकल्पो के आधार पर 3 जनवरी 2020 के दिन प्रदेश एवं केन्द्र सरकार की मजदूर एवं उद्योग से संबंधित मुद्दों पर धरना-प्रदर्शन का कार्यक्रम होगा ।

भारतीय मजदूर संघ द्वारा जारी प्रेस विज्ञाति के अनुसार 3 जनवरी को इन मुद्दों पर धरना-प्रदर्शन का कार्यक्रम होगा

देश की अधिकांश औपचारिक नौकरियों को अनुबंधित या निश्चित अवधि(Fixed-Term) रोजगार में बदल दिया गाया है। नौकरी की सुनिश्चितता , जैसा कि यह हमेशा परिकल्पित किया गया था, से समझौता किया गया है और श्रमिकों को हमेशा बाहर फेंके जाने/बदल दिए जाने का डर होता है। यही डर उनके शोषण का अग्रगण्य कारण है।

भारतीय मजदूर संघ ठेकेदारी और अनुबंधित/आकस्मिक नौकरियों का विरोध करता है और मांग करता है कि सभी अनुबंध, निश्चित अवधि, आकस्मिक, दैनिक-मजदूरी और अस्थायी श्रमिकों को स्थायी रोजगार में नियमित किया जाये। श्रमिकों में उद्योग/कार्य के प्रति अपनेपन की भावना पैदा करने के लिए उनकी नौकरियों का औपचारीकरण आवश्यक है। यह उनकी उत्पादन क्षमता में वृद्धि के लिए जरूरी है।

आंगनवाड़ी, आशा, पीडीएस, मध्याह्न भोजन, एनएचएम आदि सरकारी योजनाओं में काम करने वाले सभी स्कीम वर्करों को सरकारी कर्मचारियों का दर्जा दिया जाये। ये लोग अन्य सरकारी कर्मचारियों की तरह ही मेहनत करते हैं और इसलिए अन्य कर्मचारियों की भाँति ही इनको भी लाभ मिले।

सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण, विनिवेश, रणनीतिक बिक्री और निगमीकरण को रोकना चाहिए। सार्वजनिक उपक्रम भारतीय औद्योगिक संरचना एवं अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं और सरकार को इनके नीतिगत विनिवेश/निजीकरण को रोकना चाहिए। एफडीआई को रोकना होगा। रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश/निगमीकरण राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय है।

भारतीय रेल, जो एक आवश्यक सेवा और भारतीय शहरों की जीवन रेखा है, का निगमीकरण बंद होना चाहिए।

श्रम कानूनों के 4 कोडों में संहिताकरण के लिए सरकार के प्रयासों की सराहना करते हैं । लेकिन कोड में कई प्रावधान प्रभावी रूप से श्रम-विरोधी हैं/ श्रमिकों के सामान्य हित को चोट पहुँचाते हैं। लेबर कोडस में से श्रमिक विरोधी प्रावधानों को हटाया जाना चाहिए। हम संबंधित मंत्रालय के सामने अपनी टिप्पणी पहले ही प्रस्तुत कर चुके हैं।

उद्योगों/उद्योगपतियों के साथ सांठगांठ में देश में स्थापित नौकरशाही विभिन्न कानूनों और नियमों की आड़ में हमेशा से मजदूरों की बार्गेनिंग पावर और श्रमिकों के अन्य अधिकारों का हनन करने की कोशिश करती रही है। इस पर अविलम्ब अंकुश लगाना होगा ।

श्रमिकों के न्यूनतम वेतन सहित मौजूदा श्रम कानूनों को समग्रता से लागू किया जाना चाहिए। कानून लंबे समय से मौजूद हैं और नीतिकारों का इरादा स्पष्ट है, लेकिन कानून प्रवर्तन खोने के कारणजमीनी प्रथाओं को बदलने में कारगर नहीं रहे हैं। मौजूदा कानूनों के उचित कार्यान्वयन से कार्यस्थल में कई दर्घटनाओं को रोका जा सकता था। हाल ही में हमने दिल्ली की मंडी में आग लगने का मामला देखा है। यह कानूनों का गैर-कार्यान्वयन है, जो टकराव की स्थिति पैदा करता है।

आय-कर सीमा को 5 लाख से बढ़ाकर 8 लाख किया जाना चाहिए। एक सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कोड बनाया जाना चाहिए। देश के संरक्षक के तौर पर यह सरकार का कर्तव्य है कि वह सभी के लिए न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करे ।

सरकार मानव-पूँजी निर्माण के लिए पोषण, आवास, चिकित्सा सुविधाएँ, शिक्षा आदि जैसी बुनियादी सुविधाएँ में निवेश करे और इसे केवल राष्ट्रीय खाते से डेबिट के रूप में नहीं देखे । कम से कम 9 मूल साधनों को सभी के लिए सुनिश्चित किया जाना चाहिए। हथकरघा, कृषि, निर्माण, मतस्य पालन इत्यदि सहित सभी क्षेत्रों में वैधानिक वेलफेयर बोर्ड बनाये जाएं ।

असंगठित क्षेत्र में काम करने वले मजदूर जो भारत के कुल कार्यबल का लगभग 93 प्रतिशत हैं उनको कानूनी दायरों में सामाजिक सुरक्षा मिले स सीसीएस पेंशन को पुनः बहाल किया जाये। एनपीएस को हटाया जाये। पुरानी पेंशन योजना काफी बेहतर और प्रभावी थी। ईपीएस पेंशन सभी के लिए बढ़ाकर 5,000 रुपये की जाये। स्वायत्त/नगरपालिका निकाय धन की कमी से जूझ रहे हैं। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन निकायों को उनके कामकाज के लिए पर्याप्त धन की आपूर्ति की जाए। Cess-based वेलफेयर स्कीमें GST आ जाने से पैसों की कमी से जूझ रहे हैं स बजट में राज्यों को प्रदत्त दी गयी राशि किसी स्कीम से जुडी हुई नहीं होती ।

पहले के अभ्यासों के अनुसार, फण्ड को उचित मदों के अंतर्गत भेजा जाये स सरकारी धन की राजनीतिक दुरुपयोग रोका जाये। सरकार द्वारा संचालित विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं को अब डिजिटल कर दिया गया है। यह श्रमिकों के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन गया है। निरक्षरता/डिजिटल निरक्षरता, विभिन्न केंद्रों से फॉर्म भरने के लिए दी जाने वाली फीस, उपयोगकर्ताओं के लिए अपर्याप्त इंटर–फेस, इंटरनेट कनेक्शन समस्याएं आदि जैसी विभिन्न समस्याओं ने योजनाओं के लक्षित लाभार्थीयों का जीवन कठिन बना दिया है। मैनुअल तरीके (पहले से मौजूद) को बहाल किया जाए और डिजिटलीकरण को धीरे-धीरे हासिल किया जाए। डिजिटलीकरण मुख्यतया ग्रामीण देश में एक विशुद्ध रूप से शहरी सपना है। बढ़ती कीमतों को नियंत्रित किया जाना चाहिए।

Last updated: दिसम्बर 29th, 2019 by News Desk Monday Morning