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भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि

*9 जून को धरती आबा , भगवान बिरसा मुण्डा की शहादत दिवस पर , कोटि कोटि नमन एवं विन्रम श्रद्धाजंलि …

मुंडा जनजातियों ने 18वीं सदी से लेकर 19 वीं सदी तक कई बार अंग्रेजी सरकार और भारतीय शासकों, जमींदारों के खिलाफ विद्रोह किये।

बिरसा मुंडा के नेतृत्‍व में 19वीं सदी के आखिरी दशक में किया गया मुंडा विद्रोह उन्नीसवीं सदी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण जनजातीय आंदोलनों में से एक है।इसे उलगुलान नाम से भी जाना जाता है। मुंडा विद्रोह झारखण्ड का सबसे बड़ा और अंतिम रक्ताप्लावित जनजातीय विप्लव था, जिसमे हजारों की संख्या में मुंडा आदिवासी शहीद हुए।

बिरसा मुंडा ने मुंडा आदिवासियों के बीच अंग्रेजी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ लोगों को जागरूक करना शुरू किया। जब सरकार द्वारा उन्‍हें रोका गया और गिरफ्तार कर लिया तो उसने धार्मिक उपदेशों के बहाने आदिवासियों में राजनीतिक चेतना फैलाना शुरू किया। वह स्‍वयं को भगवान कहने लग गया। उसने मुंडा समुदाया में धर्म व समाज सुधार के कार्यक्रम शुरू किये और तमाम कुरीतियों से मुक्ति कर प्रण लिया।

1898 में डोम्‍बरी पहाडियों पर मुं‍डाओं की विशाल सभा हुई। जिसमें आंदोलन की पृष्‍ठभूमि तैयार हुई। आदिवासियों के बीच राजनीतिक चेतना फैलाने का काम चलता रहा। अंत में 24 दिसम्बर 1899 को बिरसापंथियों ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।

5 जनवरी 1900 तक पूरे मंडा अंचल में विद्रोह की चिंगारियां फैल गई। ब्रिटिश फौज ने आंदोलन का दमन करना शुरू कर दिया। 9 जनवरी 1900 का दिन मुंडा इतिहास में अमर हो गया । जब डोम्बार पहा‍डी पर अंग्रेजों से लडते हुए सैंकडों मुंडाओं ने शहादत दी।

आंदोलन लगभग समाप्त हो गया। गिरफ्तार किये गए मुंडाओं पर मुकदमे चलाए गए जिसमें दो को फांसी, 40 को आजीवन कारावास, 6 को चौदह वर्ष की सजा, 3 को चार से छह बरस की जेल और 15 को तीन बरस की जेल हुई।

बिरसा मुंडा काफी समय तक तो पुलिस की पकड में नहीं आये थे, लेकिन एक स्थानीय गद्दार की वजह से 3 मार्च 1900 को गिरफ्तार हो गए। लगातार जंगलों में भूखे-प्यासे भटकने की वजह से वह कमजोर हो चुके थे। जेल में वे बीमार हो गए और 9 जून 1900 को रांची जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई।
लेकिन जैसा कि बिरसा भगवान कहते थे कि आदमी को मारा जा सकता है, उसके विचारों को नहीं, बिरसा मुंडा के विचार मुंडाओं और पूरी आदिवासी कौम को संघर्ष की राह दिखाते रहे हैँ ।आज भी आदिवासियों के लिए बिरसा मुंडा का सबसे बड़ा स्था्न है या ये कहे की वे किसी भगवान से कम भी नहीं हैँ, जिंदगी को एक नया राह दिखाते एक रहनुमा जिसे आज हमसब झारखण्ड वासी भगवान बिरसा मुंडा की उपाधि से सरोकार करते हैँ और सभी झारखण्डी उन्हें भगवान की तरह पूजते भी हैँ

Last updated: जून 9th, 2022 by Arun Kumar