झारखंड। बिहार के मानचित्र पर गौतम बुद्धा आश्रयणी वन्यप्राणी दनुआ-भलुआ जंगल बहुचर्चित था और वन विभाग के रेंजर सहित वनकर्मी हमेशा तैनात रहते थे। शनिवार देर रात घटना में गौतम बुद्धा आश्रयणी वन्यप्राणी के हजारों पेड़ जल कर राख हो जाने के दो दिन बाद भी वन प्रक्षेत्र पदाधिकारी घटना स्थल का सुध लेने उचित नहीं समझा है।
रेंजर के लापरवाही के कारण ही जीटी रोड के किनारे जंगलों पर ग्रहण लगना शुरू हो गया और जंगलों को काट कर होटल बनाना, जंगल उजाड़ कर मादक पदार्थो की खेती करना, जंगल की कीमती पेड़ को काट कर जंगलों में आरा मशीन लगा कर लकड़ी का चिराई करना आम बात हो गई है। इससे भी जंगल अपनी प्राकृतिक छटा को समेटे हुए थी। जिसपर काली साया तब आकर घेर लिया। जब गैस भरी टैंकर दुर्घटनाग्रस्त होकर ब्लास्ट होकर आग लग गई। आग इतनी जबरदस्त लगी कि एक किलोमीटर तक जंगल के हजारों पेड़-पौधा धू-घू कर जलने लगा। जंगल की पेड़-पौधे अपने रक्षक का वाट जोहता रहा पर रेंजर कोडरमा रेंज ऑफिस में बैठकर फोटो एवं वीडियो मंगवाकर दृश्य देखता रहा।
रेंजर रामबाबू कुमार से पूछा कि सर अपने घटना स्थल का निरीक्षण कियें, इसपर वो भड़क गये और कहा कि इसका हिसाब देना पड़ेगा तो दे देंगे साथ ही कहा कि मैंने अपना स्टाफ से फोटो एवं वीडियो मंगा कर देख लिया हूँ और गैस टैंकर मालिक पर केस दर्ज करने का आदेश किया हूँ। अब प्रश्न उठता हैं कि सरकार के लाखों रुपया वन कर्मियों पर वन रक्षा करने के लिए खर्च करती है। उसके बाद भी जंगल के पेड़-पौधों को अपने रक्षक की आवश्यकता पड़ती है, तो घटना स्थल पर दुःख व्यक करने के बजाय आदेश देकर फोटो मंगँवा कर फोटो में जंगल की जाली हुई दृश्य देख रहें हैं।
गैस टैंकर पलटने के बाद से जैसे घाटी में किसी की नजर लग गई हैं प्रतिदिन घटनायें घट रही हैं जिसमें आज भी बचाव एवं राहत कार्य जारी हैं।