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जूठन से पिकनिक मनाता एक बदहाल तस्वीर

पिकनिक की कोतुहल से परिपूर्ण मैथन की हसीन वादियों में जहाँ विकसित भारत की झलक साफ दिखाई देती है,चमक दमक और चकाचौंध से भरी सैलानी पश्चिमी सभ्यता की अनुभूति कराती है, विकास की मशीन स्मार्ट फ़ोन से भले ही आज हर हाथ भरे हो।

2020 की पहली तारीख को हजारों की भीड़ में एक भूखा भारत की तस्वीर साफ झलक रही थी,जो सैलानियों की जूठन से अपना भूख मिटाने की जंग लड़ रही थी,जहाँ एक बूढी माँ अपने दो बेटियों की भूख मिटाने के लिए फेंके गए बोटियों पर निगाह टिकाये बेठे थे और अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे।

किन्तु वनभोज के दौरान सैलानियों की चूल्हे से निकलने वाली मटन,और चिकन की सुगंध इनकी बर्दाश्त की सीमा को लाँघ चुकी थी,मागने पर पर्यटक इन्हें फटकारते हुए दूर रहने को कहते और बाद में आना कह कर टाल देते। दिन ढलने को थी भूख भी परवान पर चढ़ चुकी थी ऐसे में। दानियो के हाथ भी अब कंजूसी की कमान संभाल चुकी थी।

फैके हुए खाना को इक्कठा कर खाते हुए


किन्तु शायद बर्बाद होते भोजन पर इनका ही हक़ होता है। ऐसे में भोजन एकत्रित करते-करते परिवार के पास जरूर त से ज्यादा भोजन हो चुकी थी। पूछने पर क्या करेंगे इतने भोजन का। –  बाबु चावल को सुखा कर फिर से बाद में भात बना लेंगे। ऐसी पकवान की रेसिपी शायद ही पहले कभी कानो ने सुनी होगी। किन्तु इस समृद्ध भारत में एक भूखा भारत आज भी है, इस दृश्य ने इस बात को चरितार्थ कर दी है ।

हर वर्ष ऐसे ही पिकनिक मानता है यह परिवार

मैथन डैम में हर वर्ष का लगभग यही दृश्य रहता है।  सैलानियों के बचे हुए भोजन में इनका पिकनिक होता है।

Last updated: जनवरी 2nd, 2020 by Guljar Khan