यह जरूरी है कि छात्र अपने शिक्षकों का मूल्यांकन करें जैसे कि शिक्षक छात्रों का करते हैं

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शिक्षकों, बच्चों को स्वतंत्र छोड़ो

यह बहुत दुखद है कि भारत की शिक्षा की वर्तमान परम्परा अब पूरी तरह पाठ्यक्रम आधारित हो गयी है और उसमें कुछ दरारें पैदा हो गयी हैं। भारत में छात्रों को निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार ही पढ़ाया जाता है। और साथ में कुछ गृहकार्य दिया जाता है।छात्रों को पाठ्यक्रम के अलावा कुछ भी नही सिखाया जाता है और जो इसको नहीं समझ पाता उसे अक्सर पीटा भी जाता है।

पढ़ाना और सिखाना एक ही सिक्के के दो पहलू हैं

यह जरूरी है कि छात्र अपने शिक्षकों का मूल्यांकन करें जैसे कि शिक्षक छात्रों का करते हैं।अच्छे शिक्षण को मापने का सबसे स्वीकृत मापदण्ड है कि छात्रों ने क्या सीखा। कई वर्षों से प्रशिक्षको द्वारा छात्रों का मूल्यांकन लक्ष्य और पद्धति के क्षेत्र मे सार्थकपूर्ण ढंग से परिवर्तित हुआ है।इस प्रक्रिया में हमने यह अनुभव किया है कि शारीरिक दण्ड की प्रक्रियाएँ भी होती हैं।

शारीरिक दण्ड शिक्षण पद्धति का ही एक तरीका है और यह किसी बिंदु को समझाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है

किसी भी स्थिति में ऐसा शारीरिक बल नहीं प्रयोग करना चाहिए जिससे दर्द हो या चोट लगे नहीं तो यह अपराध की श्रेणी में आएगा।सिर पर मारना या तमाचा मारना भी शारीरिक दण्ड के प्रकार हो सकते हैं पर यह शारीरिक शोषण में नही बदलना चाहिए। आजकल छात्र बराबर यह शिकायत करते हैं कि उन्हें कक्षा कार्य न करने पर या अंग्रेज़ी न बोल पाने पर या खराब परिणाम देने पर या अन्य कारणों से मार पड़ती है।

स्कूल की शैक्षिक पद्धति को गम्भीरतापूर्वक समझने के लिए उसके सिद्धांत,धारणा और पद्धति को समझना चाहिए,तभी किसी वैकल्पिक प्रक्रिया को लागू करना सम्भव होगा।जब छात्र किसी विषय को समझने में असफल होता है तब छात्रों और शिक्षकों से यह आशा की जाती है कि वह सारे क्रियाकलाप का निरीक्षण करे और फिर उसके अनुसार समस्या का हल ढूढ़े, बजाय इसके कि शारीरिक दण्ड का सहारा लें।जब स्कूल अपने छात्रों को बाहरी दुनिया की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करता है तब शारीरिक दण्ड का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि यह छात्रों को निरुत्साहित करता है।

Last updated: अक्टूबर 11th, 2017 by Jiban Majumdar

Jiban Majumdar
Columnist from Pune (Maharashtra) Active in generating Social Awareness campaign
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