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दलितों द्वारा बुलाये गए भारत बंद में विपक्ष ने झोंक दी पूरी ताकत

लखीसराय में सोमवार को सम्पन्न हुआ बंद

एससी-एसटी संघ के आह्वान पर जिले में सभी विपक्षी दलों की शानदार एकजुटता के बीच भारत बंद कार्य क्रम शांतिपूर्ण एवं अभूतपूर्व तरीके से सम्पन्न हो गया . इस दौरान अहले सुबह से ही एक-कर लगभग सभी विपक्षी नेताओं की अगुआई में विभिन्न बैनर तले लोगों ने बडहिया, लखीसराय, किउल व अन्य स्थानों पर रोड और रेल जाम कर भारत सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी करते दिखे . एसटी-एससी एक्ट के बदलाव के खिलाफ लोग स्वतः स्फूर्त तरीके से जिले भर में सड़कों पर प्रदर्शन करते दिखे . इस बीच कार्यकर्ताओं ने रेलवे को पूरी तरह से जाम कर दिया . इसके चलते कई ट्रेनों को रामपुर डुमरा-बडहिया -भलूई एवं सिरारी -कजरा के बीच घंटों रोक दिया गया .दूसरी ओर जिले से गुजरने वाली एन0 एच0 एवं एस0 एच0 पर भी आवागमन ठप्प होते ही हर तरफ मानो जिंदगी ठहर सी गई. इस दौरान लखीसराय जिले की अक्सर दुकानदारों ने भी अपनी अपनी दुकानें भी बंद कर रखी.

विपक्षी पार्टियों ने झोंक दी ताकत

भारत बंद कार्यक्रम के दौरान एसटी-एससी संघ के जाॅन मिलटन पासवान, हाकिम पासवान, वामपंथी नेता काॅ0 प्नमोद शर्मा , जितेन्द्र कुमार, संजय कुमार अनुरागी , पूर्व कांग्रेस जिला अध्यक्ष प्रो0 सुनील कुमार, राजद प्रवक्ता भगवान यादव, उपाध्यक्ष नरेश यादव के अलावे आइसा और इनौस व कई संगठन के लोग जोरदार तरीके से आन्दोलन को सफल बनाने में सक्रिय दिखे . मौके पर सभी वक्ताओं ने केन्द्र एवं राज्य सरकार पर संवैधानिक अधिकार को समाप्त करने के आरोप लगाए. तमाम वक्ताओं ने कहा कि एसटी-एससी अत्याचार निवारण अधिनियम में संशोधन एक साजिश के तहत किया गया है. जो इस समुदाय के साथ घोर अन्याय है. जाॅन मिलटन पासवान ने कहा कि एसटी, एससी और ओबीसी के खिलाफ आरएसएस और भाजपा सरकार एक साजिश के तहत षड़यंत्र कर रही है। वे तीनों समुदाय के संवैधानिक अधिकार को समाप्त करना चाहती है और मनुस्मृति लागू करने की साजिश कर रही हैं। उन्होंने ने कहा कि एसटी-एससी अत्याचार निवारण अधिनियम में संशोधन एक साजिश के तहत किया जा रहा है। यह एससी-एसटी समुदाय के साथ घोर अन्याय है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति अधिनियम में बदलाव किए जाने के बाद आज पूरे भारत में बंद का एलान किया गया है। राजद, भाकपा, माले ,आइसा और इनौस ने इस बंद को सफल बनाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इस बीच एसडीपीओ पंकज कुमार शहीद गेट के समीप स्वयं ट्रैफिक की कमान संभालते नजर आए. इस दौरान कबैया थाना अध्यक्ष पंकज कुमार झा भी एसडीपीओ के साथ भारी संख्या में सुरक्षा बलों के जवान भी तैनात थे . इनके अलावे अन्य पदाधिकारी भी विधि-व्यवस्था ड्यूटी में तत्पर रहे .

भारत के कई राज्यों से हिंसा की भी खबरें आयी

मधुपुर में बंद का सामान्य असर दिख (फोटो : मधुपुर संवाददाता राम झा  )

 

देश भर में दलित संगठनों द्वारा बुलाये गए भारत बंद के प्रदर्शन का जनजीवन पर व्यापक असर पड़ा है। मध्य प्रदेश में हिंसा में एक शख्स की मौत हो गई है। एमपी के मुरैना में 4 लोगों की मौत के बाद तीन शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया है। कई राज्यों में दो गुटों में हिंसक झड़प हुयी जिसमें 30 से भी अधिक लोग जख्मी हो गए। केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान के संसदीय क्षेत्र हाजीपुर में भी बड़े पैमाने पर आगजनी हुई है। यहाँ पर प्रदर्शनकारियों ने कई गाड़ियों में आग लगा दी और दुकानों में तोड़फोड़ की। बिहार के आरा, जहानाबाद, दरभंगा, अररिया, मधुबनी, सहरसा, जिलों में बंद समर्थक रेल पटरियों पर बैठ गए, जिससे रेलों के परिचालन पर भी प्रभाव देखा गया । बंद समर्थकों ने कई ट्रेनें रोक  दी और हंगामा किया। इसके अलावा पूर्णिया, कटिहार,मुजफ्फरपुर, औरंगाबाद, मधेपुरासहित विभिन्न जिलों में लोग सड़क जामकर सड़कों पर आगजनी की, जिससे सड़कों पर वाहनों की लंबी कतार लग गई। इस बंद को राजद, सपा, कांग्रेस, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, भाकपा (माले) और शरद यादव सहित सभी विपक्षी पार्टियों ने बंद को सफल बनाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी।

केंद्रीय मंत्री ने शांति की अपील की

बोकारो में बंद करते समर्थक (फोटो : बोकारो संवाददाता : रवि कुमार सिन्हा )


वहीं केन्द्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, गृह मंत्री राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दलित प्रदर्शनकारियों से शांति की अपील की है। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर कर दी है। कानून मंत्री ने कहा कि वरिष्ठ वकील सरकार के पक्ष को कोर्ट के सामने रखेंगे।

राहुल गांधी ने आंदोलनकारियों को सलाम किया

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सड़क पर उतरने वाले दलितों को सलाम किया एवं उनका समर्थन किया । उन्होंने कहा कि भाजपा एवं आरएसएस दलितों को समाज के निचले पायदान में रखना चाहती है। उन्होंने कहा, “हजारों दलित भाई-बहन आज सड़क पर उतरकर नरेंद्र मोदी सरकार से अपने अधिकारों की रक्षा की मांग उठा रहे हैं। हम उन सभी को सलाम करते हैं।”

बंगाल ने नहीं दिखा असर

चुनावी मोड़ में आ चुके पश्चिम बंगाल में इस बंद का कोई भी असर देखने को नहीं मिला। पश्चिम बर्धमान जिले में सड़क पर कोई प्रदर्शनकारी नहीं दिखे। जनजीवन सामान्य रहा

 

इस बंदी में जिस तरह सभी मुख्य विपक्षी पार्टियां खुल कर सामने आई और उनमें श्रेय लेने की भी होड़ लगी रही । उस हिसाब से कह सकते हैं कि वास्तव में यह विपक्ष द्वारा बुलाया गया बंद था। जिसमें अगले लोकसभा चुनाव के लिए सभी विपक्षी पार्टियों ने अपनी ताकत आजमाई है। अदालतों पर आंदोलन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उल्टा इस आंदोलन से अदालत में उनका पक्ष कमजोर ही होगा। दलित का अर्थ होता है दबा हुआ। शोषण का शिकार। लेकिन जो समुदाय  भारत बंद कराने की  क्षमता रखते हों उन्हें किसी भी रूप से दलित नहीं कहा जा सकता है।  सुप्रीम कोर्ट ने अपने दलित उत्पीड़न कानून में बदलाव करते हुये यह प्रावधान किया कि अब केवल शिकायत के आधार पर किसी भी सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी नहीं होगी। यह कानून सभी दलितों पर लागू नहीं किया गया है। केवल सरकारी कर्मचारियों के लिए है। निस्संदेह अदालत में कुछ ऐसे मामले गए होंगे जिसके  आधार पर अदालत ने यह फैसला सुनाया है क्योंकि अदालत तो भावनाओं के आधार पर फैसला नहीं सुनाती है। सरकारी प्रतिष्ठानों में अक्सर देखा गया है मामूली सी बात पर भी आपसी रंजिश निकालने के उद्देश्य से इस कानून का दुरुपयोग किया जाता है जिससे सरकारी काम में बाधा आती है। नौकरी करने वाले लोग पढे लिखे होते हैं उन्हें कानून की जानकारी होती है एवं वे संगठनिक रूप से मजबूत भी होते हैं  एवं उनके पास पैसा भी होता है । यह सभी वर्गों में देखा गया है केवल दलित के क्षेत्र में ही नहीं । ऐसे जानकार व्यक्ति कानून का अक्सर दुरुपयोग कर जाते हैं। वास्तविक रूप से जो दलित हैं अर्थात दबे हुये एवं शोषण के शिकार हैं , उन्हें  तो न कानून की जानकारी है और न यह क्षमता कि कानूनी लड़ाई लड़ सकें । सरकार को वास्तविक रूप से दलितों के अधिकारों की सुरक्षा पर ध्यान होगा ।  दलित आंदोलन कर रहें हैं यह तो शुभ संकेत है ।इसका मतलब है कि दलितों का सामाजिक और वैचारिक उत्थान हुआ है।    लेकिन यह आंदोलन यदि गुंडागर्दी में तब्दील हो जाये तब यह दलितों के लिए ही अशुभ संकेत हैं।  दलितों  को   भी यह ध्यान रखना होगा कि आंदोलन के आड़ में एक बार फिर राजनीतिक  पार्टियों उनका शोषण न कर लें

Last updated: अप्रैल 3rd, 2018 by News Desk Monday Morning

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