समस्त ग्रंथों का निचोड़ है श्रीमद् भागवत : चित्रलेखा
अंडाल(शिवदानी) -खास काजोड़ा के प्राचीन हनुमान मंदिर प्रांगण में नो दिवसीय श्री श्री 108 श्री महारुद्र यज्ञ एवं श्रीमद्भागवत कथा चल रही है जिसमें श्रीमद्भागवत कथा ज्ञानयज्ञ के दूसरे दिन देवी चित्रलेखा जी ने विधुर विधुरानी का प्रसंग सुनाया। उन्होंने कहा कि प्रभु भाव के भूखे हैं और उनकी तृप्ति थाली में परोसे गये व्यंजनों से नहीं, बल्कि भक्त के समर्पण से होती है। इसीलिए भगवान कौरव के बुलावे को अस्वीकार करके भक्त विधुर विधुरानी के घर केले के छिलके खाने चले गए।
जीवन मात्र प्रभु का दिया हुआ है
देवी चित्रलेखा जी ने कहा कि भगवान कपिल कहते हैं कि ये जीवन मात्र प्रभु का दिया हुआ है। इसे प्रभु भक्ति में लगाना चाहिए ।जीव प्रभु कृपा से जन्म लेता है और फिर अपने जीवन के नित्य कार्यों, खुशियों व दु:ख के चक्कर में पड़कर प्रभु को भूल जाता है। इस जीवन का थोड़ा सा वक्त भगवान के धन्यवाद में भी लगाना चाहिए। चित्रलेखा जी ने कहा कि उम्र बढ़ते-बढ़ते मनुष्य को भगवान की ओर रुख कर लेना चाहिए, अन्यथा एक समय जीवन के अंत में प्रभु का नाम लेना भी संभव नहीं हो पाता है। कथा प्रसंगों में हिरण्याक्ष का वध व हिरण्यकश्यप की कथा, सती चरित्र, ध्रुव चरित्र, ध्रुव जी के वंश का निरूपण व खगोल विज्ञान का भी वर्णन किया गया।
श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण हर धर्म व जाति के लोगों को करना चाहिए
आगे उन्होंने कही कि आज तो जाति,धर्म के लिए राजनीतिक लाभ उठाने के लिए लोग लड़ाई करवा रहे रहे हैं जिसका फायदा राजनीतिक लोगों को मिल रहा है श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण हर किसी को हर धर्म व जाति के लोगों को करना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि “परहित सरिस धर्म नहिं भाई पर पीड़ा सम नहिं अधमाई” अर्थात दूसरों की भलाई के समान अन्य कोई श्रेष्ठ धर्म नहीं है और दूसरों को कष्ट देने के जैसा अन्य कोई पाप नहीं है. निरपेक्ष रहकर दूसरों के हितार्थ कार्य करना परहित है. पर पीड़ाहरण परहित है. पारस्परिक विरोध की भावना घटना और प्रेम भाव बढ़ाना परहित है. दिन, दुखी, दुर्बल की सहायता परहित है. आवश्यकता पड़ने पर निस्वार्थ भाव से दूसरों को सहयोग देना परहित है. मन, वचन और कर्म से समाज का मंगल साधन परहित है. अर्थात परहित ही इस लोक में सर्व-सुख तथा सर्व उन्नति का कारण है और मृत्यु होने पर आवागमन से छुटकारा प्राप्त करने का साधन है. इस मौके पर राकेश नोनिया, रेनू देवी नोनिया बिष्णु देव नोनिया , राकेश कुमार,बाबा सीताराम दास जी महाराज सहित काफी संख्या में भक्तगण उपस्थित थे.