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पालोजोरी में कला बिखरते बहरूपिया

उत्तम रंजन, पालोजोरी, देवघर-बहुसांस्कृति वाले भारत देश में एक कला है बहरूपिया, जो धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। लेकिन कुछ लोग हैं, जो विभिन्न व्यवसायों से जुड़े होने के बावजूद इस कला को इतिहास बनने से रोकने का प्रयास कर रहे हैं। इन लोगों का मानना है कि समाज में इन दिनों ‘बहरूपियों’ की संख्या बढ़ गई है, जिसके चलते असली बहरूपियों की कद्र कम हो गई है। इनकी सरकार से मांग है कि सभी राज्यों की संस्कृति के आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया जाए।

पालोजोरी में पिछले आठ दिनों से बहरूपिया बन कर लोगों को मनोरंजन करा रहे बिट्टू का कहना है कि वे पिछले 25 साल से पिता के साथ बहुरुपिया बन कर लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं। लेकिन चार वर्ष पहले पिता की मौत के बाद भाई के साथ मिलकर फिर से इस कला में जुड़ गए है। बिट्टू के मुताबिक यह कला मजहब से भी ऊपर है। उनके पास शिव जी, कृष्ण-सुदामा,श्रवण कुमार, इंद्रदेव, रावण,मोगली, फिल्मी कलाकार, बजरंग वाली सहित कई वेशभूषाओं का संग्रह है। उन्होंने बताया कि उनके लिए यह कोई व्यवसाय नहीं है, बल्कि संस्कृति को बचाने की सेवा है।

बताया कि हमारी संस्कृति नहीं बचेगी तो देश जीवित नहीं रहेगा। वे अपने दो साथियों के साथ मिलकर देश की संस्कृति और कला को बचाने का अभियान चला रहे हैं। मालूम हो कि बहरूपिया ही हिंदुस्तान का पहला कलाकार, जासूस और मेकअपमैन है। 1857 की क्रांति को देशभर में फैलाने वाले बहरूपिया ही थे। वे इसे देवों की कला बताते हुए कहते हैं कि महाभारत में भगवान कृष्ण के कई रूप धारण करने की बात है और उन्हें छलिया भी कहा गया।

Last updated: मई 26th, 2019 by Ram Jha