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चाइना लाइटों से हार गई देशी मिटटी के दिये

माटी के दिए

दुर्गापुर -घर के बुजुर्ग लोगों का कहना है कि दीपावली हो या छठ या अन्य त्यौहार इस शुभ अवसर पर पहले मिट्टी से बने दिए ही जलाए जाते थे. लेकिन अब आधुनिक जमाना आ गया है. इसके साथ ही मिट्टी के दीपक की जगह अब लोग अन्य विकल्पो की तलाश कर चुके हैं. आधुनिक युग में विभिन्न प्रकार के सजाने का सामान एवं दीप बाजार में उपलब्ध होने से मिट्टी से बनने वाली दीप अब लोग नहीं खरीद रहे हैं. इसका बुरा प्रभाव कुम्हारों पर पड़ रहा है. अब धीरे-धीरे आधुनिक बच्चों के बीच मिट्टी के दिए लुप्त हो रहे हैं.

देशी

दीप तैयार करने वाले धर्मेंद्र ठाकुर ने कहा कि बाजार में चाइना का समान उपलब्ध हो गया है, जैसे ट्यूनी लाइट, मोमबत्ती लाइट से बने दीप बाजार में आ जाने से मिट्टी से बने दीप की मांग बहुत ही कम हो गई है. पहले लोग देवी-देवताओं के सामने दीप जलाते थे. जिससे घी-तेल की जरूरत पड़ती थी. फिलहाल डिजिटल जमाने में तेल तथा मिट्टी से बने दिए की जरूरत नहीं पड़ रही है. आगे कहा कि माटी के दीए बनाने में काफी खर्चा भी आ रहा है. माटी बहुत दूर से खरीद कर लाना पड़ता है.

जिसके कारण दाम में वृद्धि हुई है. वहीं चाइना का सामान कम दाम में उपलब्ध हो गया है और लोग भी सस्ते की तरफ जा रहे हैं. पहले बाजार में दिये 2 रुपये दर्जन बिका करती थी, 7-8 रुपये बिक रही है. जिसके कारण लोग मिट्टी के दीए को बाय-बाय कर चाइना के सामान खरीद रहे हैं. धर्मेन्द्र का कहना है कि एक तरफ मंहगाई, दूसरी तरफ कारोबार भी मंदा, अब हम लोग जाए तो कहाँ जाए. फिर भी रोजी-रोटी के लिए अभी भी इससे जुड़े हुए हैं.

मगर उनके परिवार के लोग अब नहीं चाहते हैं कि दीया व अन्य मिटटी के सामान बनाए, क्योंकि सामान बिक्री नहीं होती है. घर में ही पड़े रह जाते हैं. बीच में चाइना के सामानों का कुछ लोग बहिष्कार कर रहे थे, उस समय फिर दिए की मांग बढ़ी थी. मगर फिर जैसा का तैसा ही हो गया है. फिर चाइना की समान बाजार उपलब्ध में हो गई है. स्थानीय लोगों का कहना है कि दीपक के दाम में वृद्धि हुई है और चाइना का लाइट बहुत सस्ते में बिक रहे हैं तथा घर की सजावट में भी देखने में अच्छा लगता है.

Last updated: अक्टूबर 31st, 2018 by Durgapur Correspondent